शबनम की तरह सुब्ह की आँखों में पड़ा है हालात का मारा है पनाहों में पड़ा है था ज़िंदगी के साज़ पे छेड़ा हुआ नग़्मा बे-रब्त जो टूटे हुए साज़ों में पड़ा है सूरज की शुआ'ओं से उलझता है मुसलसल साया है अभी वक़्त की बाहोँ में पड़ा है तारीख़ बताएगी वो क़तरा है कि दरिया आँसू है अभी वक़्त के क़दमों में पड़ा है इस तरह वो रद करता है 'आलम' के कहे को जैसे कोई भरपूर गुनाहों में पड़ा है