शबनम से लिखूँ अश्कों से लिखूँ मैं दिल की कहानी कैसे लिखूँ फूलों पे लिखूँ हाथों पे लिखूँ होंटों की ज़बानी कैसे लिखूँ हर सम्त यहाँ है रेत अभी किस तरह चलूँ ता-उम्र यहाँ इस रेत पे बनते नक़्श नहीं अब अपनी निशानी कैसे लिखूँ ये उलझन तो बस उलझन है कुछ पाना है कुछ खोना है साहिल की तमन्ना करते हुए मौजों की रवानी कैसे लिखूँ क्यूँ रेत पे ढूँढते फिरते हो अब हाथ न आएगा ये सराब ये बात हक़ीक़त है लेकिन मैं दिल की ज़बानी कैसे लिखूँ हैं दिल की बातें यूँ तो बहुत कुछ कहना है कुछ सुनना है इस काग़ज़ के एक टुकड़े पर मैं अपनी कहानी कैसे लिखूँ हर दौर नया है बात नई मायूस नहीं है फिर भी 'किरन' इन बिछड़े हुए अँधियारों की है बात पुरानी कैसे लिखूँ