शबनम शबनम रोता है दरिया हो कर प्यासा है दिल की बंजर धरती पर यार का मौसम आया है नफ़रत का एहसास हुआ जब जब शीशा देखा है मैं भी कम-कम मिलता हूँ वो भी कट कट जाता है मेरे घर आ देख ज़रा हर सू तू ही बिखरा है रातों को रोना उस का बे-ख़्वाबी का क़िस्सा है जितना जी चाहे हँस लो सब को इक दिन रोना है घर से बाहर निकलो तो दुनिया जैसी दुनिया है रिश्ते-नाते खेल समझ कौन किसी का होता है जिस को अपनी जाँ कहते हो एक दिन उस को भी खोना है कच्चे-पक्के रिश्तों का दुख 'फ़रहान' को सहना है