शफ़क़ का नूर भी रह रंग-ए-आफ़्ताब में आ नज़र बचा के कभी वादी-ए-गुलाब में आ वरक़ वरक़ न परेशान रह हवाओं में हुरूफ़-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना है तो किताब में आ चमकते ज़र्रों में बहता हुआ समुंदर है है तुझ को शौक़-ए-तजस्सुस तो फिर सराब में आ ख़ुतूत ही के वसीले से मैं पढ़ूँ तुझ को कभी सवाल की सूरत कभी जवाब में आ मिरे गुनाह में शामिल रहा है तू भी 'असद' निभाने अहद-ए-वफ़ा अब मिरे अज़ाब में आ