शफ़क़त के आस-पास मुरव्वत के आस-पास पाओगे हम को सिर्फ़ मोहब्बत के आस-पास पहचान लेना बस वही महबूब है मिरा मिल जाए आप को जो नज़ाकत के आस-पास ये क्या कि आज आप कहीं भी नहीं मिले ख़ल्वत के आस-पास न जल्वत के आस-पास इन को कहीं भी ले चलूँ कोई समाँ दिखाऊँ फिरती हैं आँखें बस तिरी सूरत के आस-पास तेरे सिवा कोई भी तमन्ना नहीं मुझे रहता है तू ही तो मिरी हसरत के आस-पास क्या यूँही लहजा है मिरा इस दर्जा दिल-नवाज़ रहता हूँ इक सरापा-नफ़ासत के आस-पास महसूस करता हूँ मैं तुझे ऐ मिरे हबीब हर दिल-फ़रेब निकहत-ओ-ज़ीनत के आस-पास