शहर बेज़ार रहगुज़र तन्हा ज़िंदगी उठ चली किधर तन्हा मेरी रग-रग में धूल रक़्साँ है मुझ में मौजूद है खंडर तन्हा दश्त की ना-तमाम राहों पर कोई साथी है तो शजर तन्हा तेरी आहट सजा के पलकों पर ढूँढती है तुझे नज़र तन्हा हो के बे-नूर रात कहलाई चाँद को ढूँढती सहर तन्हा संग भी दिल भी और ठोकर भी 'अर्श' तन्हा न ये सफ़र तन्हा