दाने के बा'द कुछ नहीं दाम के बा'द कुछ नहीं सुब्ह के बा'द शाम है शाम के बा'द कुछ नहीं ख़्वाब का आख़िरी ख़ुमार आँख में है कुछ इंतिज़ार नींद ज़रा सा काम है काम के बा'द कुछ नहीं ख़ाक-ए-ख़राब हूँ ज़मीं तू मिरा माजरा न सुन नक़्श के बा'द नाम था नाम के बा'द कुछ नहीं शहर की हद भी माप ली शाम भी दिल पे छाप ली एक चराग़ और एक बाम के बा'द कुछ नहीं वस्ल गया तो हिज्र था हिज्र गया तो कुछ न था ख़ास के बा'द आम हों आम के बा'द कुछ नहीं जिस्म का नश्शा पी चुके अपनी तरफ़ से जी चुके चलिए कि जाम उलट चुका जाम के बा'द कुछ नहीं