शहर से वो शख़्स इक इक हर्फ़-ए-उल्फ़त ले गया मुंजमिद लफ़्ज़ों की तहरीरी इमारत ले गया सब्ज़ जामुन की महकती छाँव से उट्ठा ग़ुबार आदमी के ज़ेहन से ख़्वाबों की जन्नत ले गया लिख के अंजाम-ए-सफ़र की दास्ताँ तफ़्सील से राहबर लोगों की बस्ती से मसर्रत ले गया हौसलों के टूटते मीनार से निकला वो शख़्स मुंतशिर अफ़्कार से मेहर-ओ-मुरव्वत ले गया