ता'मीर-ए-काएनात के सामाँ लिए हुए आई हूँ राज़-ए-आलम-ए-इम्काँ लिए हुए जाऊँ किधर मैं कश्ती-ए-अरमाँ लिए हुए हर साहिल-ए-मुराद है तूफ़ाँ लिए हुए जल्वा नज़र फ़रेब है दुनिया है दिल फ़रेब हर आइना है दीदा-ए-हैराँ लिए हुए ख़ुद-बीं तू मेरे शेवा-ए-तस्लीम पर न जा बैठी हूँ राज़-ए-आलम-ए-इम्काँ लिए हुए हर क़तरा है तलातुम-ए-दरिया की यादगार हर ज़र्रा है नुमूद-ए-बयाबाँ लिए हुए शान-ए-जुनूँ तो देखिए अपने सरों पे आज फिरते हैं मुझ को ख़ार-ए-बयाबाँ लिए हुए अल्लाह रे दुआ-ए-लब-ए-ज़ख़्म का असर वो ख़ुद ही आ रहे हैं नमक-दाँ लिए हुए पुर-दाग़ मेरा दिल रहा बज़्म-ए-नशात में आया हज़ार शम-ए-फ़रोज़ाँ लिए हुए ओ बे-नियाज़ देख तिरी बज़्म-ए-नाज़ से जाती हूँ इश्क़-ए-बे-सर-ओ-सामाँ लिए हुए 'कुलसूम' कल वो गुज़रे हैं मेरे क़रीब से आँखों में इक शरारत-ए-पिन्हाँ लिए हुए