शैदा मुझे बनाया गेसू-ए-अम्बरीं का दिल ही मिरा हुआ है लो साँप आस्तीं का उस को ख़याल आया फिर उस बुत-ए-हसीं का अल्लाह है निगहबाँ मेरे दिल-ए-हज़ीं का गो पास वो नहीं हैं पर देखता हूँ हर दम लेता हूँ मैं तसव्वुर से काम दूरबीं का हूरों के ज़िक्र पर मैं आया नहीं हूँ वाइ'ज़ मुझ को ख़याल इस दम आया है इक हसीं का कुछ इज़्तिराब दिल का बे-ताबि-ए-जिगर कुछ उस को सुना दिया यूँ क़िस्सा कहीं कहीं का तुझ को जो है मुकरना महशर में मेरे ख़ूँ से क़ातिल छुड़ा ले पहले धब्बा तू आस्तीं का