याँ मुद्दई' अपना किसे ऐ यार न देखा है कोई जिसे तेरा तलबगार न देखा सोतों को जगाया मिरे नाले ने अदम के पर ताल-ए-ख़्वाबीदा को बेदार न देखा कल बज़्म में सब पर निगह-ए-लुत्फ़-ओ-करम थी इक मेरी तरफ़ तू ने सितमगार न देखा जुज़ चश्म-ए-बुताँ मय-कदा-ए-दहर में 'जोशिश' हम ने तो किसी मस्त को होश्यार न देखा