शाम आई तो ब-हर-सम्त नुमूदार हुआ तुझ से अच्छा तो तिरा साया-ए-दीवार हुआ इक तिरी याद कि मानिंद-ए-सहर रौशन है इक तिरा नाम कि मुझ को अबद-आसार हुआ जब मैं सोया तो रखा उस ने मिरे हाथ पे हाथ बख़्त-ए-कम-बख़्त भी किस वक़्त पे बेदार हुआ एक साइल है तिरे दर का सभी जानते हैं हाँ वही शख़्स कि जो गाँव का सरदार हुआ तू ने इस इश्क़ में पाई है बहुत सी दौलत मुझ सा नादार तो ले-दे के क़लमकार हुआ दिन को चमगादड़ें जो देख नहीं पाती हैं ऐ ख़ुदा इन को तो सूरज तिरा बे-कार हुआ सख़्त जाड़े की अज़िय्यत से निकल आया हूँ आप के जिस्म की हिद्दत से मुझे प्यार हुआ आप के हुस्न-ए-फ़ुसूँ-साज़ के क्या कहने हैं आइना देख के हैरत में गिरफ़्तार हुआ उस ने उस पार बुलाया है कई बार 'वली' और दरिया कि नहीं मुझ से कभी पार हुआ