शाम को सुब्ह-ए-चमन याद आई किस की ख़ुशबू-ए-बदन याद आई जब ख़यालों में कोई मोड़ आया तेरे गेसू की शिकन याद आई याद आए तिरे पैकर के ख़ुतूत अपनी कोताही-ए-फ़न याद आई चाँद जब दूर उफ़ुक़ पर डूबा तेरे लहजे की थकन याद आई दिन शुआ'ओं से उलझते गुज़रा रात आई तो किरन याद आई