शाम-ए-ग़म की सहर न हो जाए हर ख़ुशी मुख़्तसर न हो जाए आह दिल पर असर न हो जाए उन की भी आँख तर न हो जाए राज़-ए-उल्फ़त सँभाल कर रखिए हर कोई बा-ख़बर न हो जाए हिज्र में दिल का दिल-शिकन आलम जो इधर है उधर न हो जाए ज़िक्र-ए-तकमील-ए-आरज़ू छेड़ो रात यूँही बसर न हो जाए मुझ पे इतना करम न फ़रमाओ मेरा ग़म मो'तबर न हो जाए