शम-ए-उम्मीद गर नहीं होती शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती हाए ना-क़द्री-ए-जहाँ अफ़सोस क़द्र-ए-अहल-ए-हुनर नहीं होती बात करते हैं लोग बरसों की और पल की ख़बर नहीं होती एक ऐसा भी है सफ़र कि जहाँ ज़िंदगी हम-सफ़र नहीं होती हक़-पसंदी मिज़ाज हो जिस का मुफ़लिसी उस के घर नहीं होती ज़िंदगी का न ए'तिबार करो ज़िंदगी मो'तबर नहीं होती