शम-ए-उम्मीद जला बैठे थे By Ghazal << कभी रस्ते को रोते हैं कभी... जो ज़ख़्मों से अपने बहलते... >> शम-ए-उम्मीद जला बैठे थे दिल में ख़ुद आग लगा बैठे थे होश आया तो कहीं कुछ भी न था हम भी किस बज़्म में जा बैठे थे दश्त गुलज़ार हुआ जाता है क्या यहाँ अहल-ए-वफ़ा बैठे थे अब वहाँ हश्र उठा करते हैं कल जहाँ अहल-ए-वफ़ा बैठे थे Share on: