शम्अ-रू आशिक़ को अपने यूँ जलाना चाहिए कुछ हँसाना चाहिए और कुछ रुलाना चाहिए ज़िंदगी क्यूँकर कटे बे-शग़ल इस पीरी में आह तुम को अब उस नौजवाँ से दिल लगाना चाहिए इस मैं सब राज़-ए-निहाँ हो जाएँगे हम पर अयाँ फिर उसे इक बार घर अपने बुलाना चाहिए फिर ये मुमकिन है कि मेरे पास तू इक दम रहे कुछ न कुछ ऐ यार बस तुझ को बहाना चाहिए गो बहुत होशियार आशिक़ ऐ परी-रू हैं तिरे लेकिन उन में एक 'ग़मगीं' सा दिवाना चाहिए