लफ़्ज़-ओ-मा'नी के समुंदर का सफ़र हैं कुछ लोग यार इस दौर में भी अहल-ए-नज़र हैं कुछ लोग ये हक़ीक़त है कि बच्चों की ज़रूरत के लिए सूरत-ए-सिलसिला-ए-गर्द-ए-सफ़र हैं कुछ लोग हम ने तो उन से कभी हक़ के सिवा कुछ न सुना जुर्म क्या उन का है क्यूँ शहर-बदर हैं कुछ लोग नूर चेहरे पे तो बातों में महक होती है चाँद का अक्स हैं ख़ुशबू का नगर हैं कुछ लोग कितने पागल हैं कि रजअ'त को तरक़्क़ी समझे आसमानों की तरफ़ महव-ए-सफ़र हैं कुछ लोग