शाएरी झूट सही इश्क़ फ़साना ही सही ज़िंदा रहने के लिए कोई बहाना ही सही ख़ाक की लौह पे लिक्खा तो गया नाम मिरा अस्ल मक़्सूद तिरा मुझ को मिटाना ही सही ख़्वाब-ए-उर्यां तो इसी तरह तर-ओ-ताज़ा है हाँ मिरी नींद का मल्बूस पुराना ही सही एक उड़ते हुए सय्यारे के पीछे पीछे कोई इम्कान कोई शौक़ रवाना ही सही क्या करें आँख अगर उस से सिवा चाहती है ये जहान-ए-गुज़राँ आइना-ख़ाना ही सही दिल का फ़रमान सर-ए-दस्त उठा रखते हैं ख़ैर कुछ रोज़ को तकमील-ए-ज़माना ही सही