शर की बातों में तमाज़त का निशाँ हो कि न हो आग लगती है तो सीने में धुआँ हो कि न हो शौक़ को अपने ज़रा तेज़-क़दम ही रखना थामने हाथ कभी बाद-ए-रवाँ हो कि न हो सैल के ग़ैज़ से लर्ज़ां है तसव्वुर का बदन बहते पानी के तकल्लुम से गुमाँ हो कि न हो दिल के ख़ाने में कशिश ख़ूब मिली है रौशन उस की महफ़िल का समाँ रश्क-ए-जिनाँ हो कि न हो दर्द-मंदी की फ़ज़ा हम तो करेंगे क़ाएम सेहन-ए-दिलदार लिए अक्स-ए-फ़ुग़ाँ हो कि न हो अपनी पलकों पे चलो आज नमी कुछ भर लें शबनमी हुस्न में तर फिर से जहाँ हो कि न हो मुझ को मौजूद तो हर मोड़ पे वो लगता है चाँद तारों की निगारिश से अयाँ हो कि न हो सोच रहती है अक़ीदत से शराबोर सदा नर्म लहजे में दुआ विर्द-ए-ज़बाँ हो कि न हो मैं तो मश्कूक नहीं उस की वफ़ा से 'जाफ़र' एक मौहूम इशारे में भी हाँ हो कि न हो