शर पसंदी को भी शहकार बताने वाले तू भी महफ़ूज़ नहीं आग लगाने वाले वो तो ज़ालिम है तो फिर उस से शिकायत क्यों है अपनी हस्ती को हैं ख़ुद आप मिटाने वाले खंडरों से वो सबक़ लेते नहीं हैं शायद हैं ज़माने में अभी ख़्वाब सजाने वाले मिल गए ख़ाक में फ़िरऔन-ए-ज़माना यारो सब मुसाफ़िर इसी दुनिया से हैं जाने वाले ज़िंदगी ख़ुद ही हर आदाब सिखा देती है बड़े आए मुझे आदाब सिखाने वाले पूछते क्या हो सितमगर की कहानी मुझ से चोट पर चोट लगाते हैं ज़माने वाले सोने चाँदी के ख़ुदाओं को गिराँ गुज़रेगा 'शाह' काग़ज़ को करामात बताने वाले