शराब ख़ून-ए-जिगर है हम को शराब हम ले के क्या करेंगे गज़क की जा है दिल-ए-बिरिश्ता कबाब हम ले के क्या करेंगे हज़ार पर्दे में तुम छुपाओ प हुस्न छुपता नहीं मिरी जाँ तुम्हारे आरिज़ ये कह रहे हैं नक़ाब हम ले के क्या करेंगे हमारे नक़्द-ए-दिल-ओ-जिगर को हिसाब के बा'द फेर देंगे हिसाब लेने का उन से हासिल हिसाब हम ले के क्या करेंगे हमें जो भेजा है तुम ने मुसहफ़ तो यार हर्फ़-आशना नहीं हम दिखाओ अपना रुख़-ए-किताबी किताब हम ले के क्या करेंगे बुतों की उल्फ़त से बाज़ आएँ मगर जो दिल मान जाए वाइ'ज़ अज़ाब में जान पड़ गई है सवाब हम ले के क्या करेंगे जो मनअ' करता है दिल न देंगे बुतों को नासेह मगर ख़ुदारा बता दे तू ही कि इस तरह का अज़ाब हम ले के क्या करेंगे ख़ुदा की बख़्शी हुई है वक़अत 'असर' नहीं कोई ऐसी ने'मत मिली है जब इज़्ज़त-ए-सियादत ख़िताब हम ले के क्या करेंगे