ग़म उठाते हैं वही अक्सर ख़ुशी पाने के बा'द जो ख़िज़ाँ को भूल जाते हैं बहार आने के बा'द ज़िंदगी यूँ कट रही है उन के ठुकराने के बा'द जैसे इक महफ़िल की हालत शम्अ' बुझ जाने के बा'द अहल-ए-कश्ती तुम को ये हर मौज देती है पयाम पाओगे साहिल मगर तूफ़ाँ से टकराने के बा'द जो भी प्यासा आए उस की प्यास बुझना चाहिए बंदिशें कैसी दर-ए-मय-ख़ाना खुल जाने के बा'द जैसे हम दौर-ए-जहालत से भी पीछे हट गए ऐसी बातें कर रहे हैं होश में आने के बा'द होशियार ऐ क़ाफ़िले वालो कि अक्सर क़ाफ़िले लुट गए हैं सरहद-ए-मंज़िल पे आ जाने के बा'द ऐ फ़लक हम भूलते जाते हैं अंदाज़-ए-ख़लील हम पे अंगारे भी बरसा फूल बरसाने के बा'द सख़्त होता है शुऊर-ए-ज़िंदगी का इम्तिहाँ इंक़लाब आने से पहले इंक़लाब आने के बा'द इंक़िलाब-ए-वक़्त के शो'लों में बढ़ के कूद जा ज़िंदगी मिलती है परवाने को जल जाने के बा'द हाँ तड़पने का भी 'शारिब' इक सलीक़ा चाहिए तौ सही दुनिया न तड़पे हम को तड़पाने के बा'द