शर्मिंदा अपनी जेब को करता नहीं हूँ मैं By Ghazal << दिन को दफ़्तर में अकेला श... न पूछ मर्ग-ए-शनासाई का सब... >> शर्मिंदा अपनी जेब को करता नहीं हूँ मैं बाज़ार-ए-आरज़ू से गुज़रता नहीं हूँ मैं पहचान ही न पाऊँ ख़ुद अपने ही अक्स को इतना भी आइने में सँवरता नहीं हूँ मैं उन कामों की बनाता हूँ फ़िहरिस्त बार बार जो काम मुझ को करने हैं करता नहीं हूँ मैं Share on: