शश-जिहत से इस में ज़ालिम बू-ए-ख़ूँ की राह है तेरा कूचा हम से तू कह किस की बिस्मिल-गाह है एक निभने का नहीं मिज़्गाँ तलक बोझल हैं सब कारवाँ लख़्त-ए-दिल-ए-हर-अश्क के हमराह है हम जवानों को न छोड़ा उस से सब पकड़े गए ये दो-साला दुख़्तर-ए-रज़ किस क़दर शत्ताह है पा-बरहना ख़ाक सर में मू परेशाँ सीना चाक हाल मेरा देखने आ तेरे ही दिल-ख़्वाह है इस जुनूँ पर 'मीर' कोई भी फिरे है शहर में जादा-ए-सहरा से कर साज़िश जो तुझ से राह है