शौक़ बाक़ी नहीं बाक़ी नहीं अब जोश-ओ-ख़रोश दिन वो पुर-कैफ़ थे जब हम थे सरासर मदहोश मस्लहत जोश-ए-बग़ावत को दबा देती है दिल धड़कता है मगर दिल की सदाएँ ख़ामोश अब कोई सूरत-ए-गुफ़्तार नज़र आती नहीं वो भी ख़ामोश मिरा रद्द-ए-अमल भी ख़ामोश तेरी रफ़्तार लगातार हो कछुए की तरह वर्ना रह जाएगा तू राह में मिस्ल-ए-ख़रगोश ज़ीस्त की राह पे तन्हा न कभी चल पाया ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दौराँ भी रहे दोश-ब-दोश सामना दहर का तन्हा उसे अब करने दे पाँव में बेटे के आने लगे तेरी पा-पोश बज़्म-ए-उर्दू से हुई देर बहुत आए हुए अब तलक साँस में ख़ुशबू है मोअ'त्तर हैं गोश अब तो घर-बार में लगता ही नहीं दिल 'आज़म' ऐसा लगता है कि हो जाएँगे हम ख़ाना-ब-दोश