शौक़ जब जुरअत-ए-इज़हार से डर जाएगा लफ़्ज़ ख़ुद अपना गला घूँट के मर जाएगा तेज़-रफ़्तार हवाओं को ये एहसास कहाँ शाख़ से टूटेगा पत्ता तो किधर जाएगा ये चमकता हुआ सूरज भी मिरी शाम के ब'अद रात के गहरे समुंदर में उतर जाएगा सिर्फ़ इक घर को डुबोना ही नहीं काम इस का अब ये सैलाब किसी और के घर जाएगा हैं हर इक सम्त यही लोग यही दुनिया है इन से बच के कोई जाए तो किधर जाएगा काम इतना तो करेगा ये उबलता हुआ ख़ून सारे मंज़र में मिरा रंग तो भर जाएगा