शौक़ का बार उतार आया हूँ आज मैं उस को हार आया हूँ उफ़ मिरा आज मय-कदे आना यूँ तो मैं कितनी बार आया हूँ दोस्तो दोस्त को सँभाला दो दूर से पा-फ़िगार आया हूँ सफ़-ए-आख़िर से लड़ रहा था मैं और यहाँ लाश-वार आया हूँ वही दश्त-ए-अज़ाब-ए-मायूसी वहीं अंजाम-कार आया हूँ