लिखा है गो तेरी क़िस्मत में 'शौकत' चश्म-ए-तर रखना मगर ज़ालिम किसी की आबरू पर भी नज़र रखना न भूलेगा न भूलेगा क़यामत तक न भूलेगा किसी का वो मोहब्बत से मिरे सीने पे सर रखना न उट्ठेगा दिल-ए-नाज़ुक से सदमा रंज-ए-फ़ुर्क़त का इलाही मेरे दर्द-ए-दिल से उन को बे-ख़बर रखना वो क्या जाने भला होती हैं कैसी ऐश की रातें मयस्सर हो न जिस को ता-सहर तकिए पे सर रखना दिल-ए-बे-आरज़ू काफ़ी है हम हसरत-नसीबों को मुबारक हो सदफ़ को अपनी मुट्ठी में गुहर रखना न हो किस तरह शर्त-ए-दिलबरी दुनिया में दिलदारी जहाँ में घर बनाना सहल है मुश्किल है घर रखना