यहाँ जज़ा-ओ-सज़ा का कुछ ए'तिबार नहीं फ़रेब-ए-हद्द-ए-नज़र है उरूज-ए-दार नहीं निगाह-ए-लुत्फ़ में ग़म का मिरे शुमार नहीं ये ए'तिबार ब-अंदाज़-ए-ए'तिबार नहीं सुकून मौत ही अंजाम-ए-इज़्तिराब-ए-फ़िराक़ जिसे क़रार न आए वो बे-क़रार नहीं ख़बर नहीं कि खिले कितने फूल गुलशन में कि आज जैब-ओ-गरेबाँ में एक तार नहीं ख़ुदा के नाम पे दिल को सिपुर्द-ए-इश्क़ किया अब इस के बा'द उमीद-ए-मआल-ए-कार नहीं दो आतिशा न सही दर्द ही सही साक़ी जो उन में फ़र्क़ करे कुछ वो बादा-ख़्वार नहीं अब उस को आ के बुझाए कोई तो हम जानें ये दाग़-ए-दिल है चराग़-ए-सर-ए-मज़ार नहीं रहीन-ए-ऐश है ख़ू-कर्दा-ए-तमन्ना है वो बादा-ख़्वार जो सरगश्ता-ए-ख़ुमार नहीं ज़माना घूम रहा है मिरी निगाहों में मुझे क़रार नहीं तो कहीं क़रार नहीं न जा न जा कभी उस गुलशन-ए-तरब में न जा जुनूँ का नाम जहाँ मौसम-ए-बहार नहीं ज़माना मेरी तबाही पे जान दे देता मैं ख़ुद ही अपनी तबाही का सोगवार नहीं करिश्मा-साज़ी-ए-नैरंग-ए-हुस्न क्या कहिए हज़ारों अहद हैं और कोई उस्तुवार नहीं शब-ए-फ़िराक़ में अंदाज़-ए-हश्र है 'शौकत' अब इस के बा'द क़यामत का इंतिज़ार नहीं