शौक़-ए-बक़ा का आप ने कितना हसीं सिला दिया ख़ाक ही से बना था मैं ख़ाक में फिर मिला दिया चश्म-ए-करिश्मा साज़ की ये भी है इक ख़ुसूसियत चाहा जिसे बना दिया चाहा जिसे मिटा दिया मुझ से अगर हुई थी भूल आप ने क्यों किया क़ुसूर क्यों मेरा हाल देख कर बज़्म में मुस्कुरा दिया आँख को दे के ज़ौक़-ए-रंग ख़ुद हुआ रंग से परे शो'बदा-ए-गिर्या तू ने ख़ूब दीद का हौसला दिया 'तरज़ी' अभी तो ये फ़ुग़ाँ बन ही रही है दास्ताँ दिल में था राज़ इक निहाँ शे'र कोई सुना दिया