शौक़-ए-दिल हसरत-ए-दीदार से आगे न बढ़ा मैं कभी जल्वा-गह-ए-यार से आगे न बढ़ा महरम-ए-राज़-ए-हक़ीक़त उसे समझें क्यूँकर इश्क़ में जो रसन-ओ-दार से आगे न बढ़ा नंग है इश्क़ में राहत तलबी ऐ ग़ाफ़िल तौसन-ए-उम्र ग़म-ए-यार से आगे न बढ़ा ख़ुल्द को हम भी समझते हैं मगर ऐ वाइ'ज़ ख़ुल्द को कूचा-ए-दिलदार से आगे न बढ़ा मैं ने क्या क्या न किया अहद-ए-वफ़ा पर इसरार वो फ़क़त वा'दा-ए-हर-बार से आगे न बढ़ा बंदिशें का'बा की क़िबले का तअ'य्युन बे-कार मेरा सज्दा क़दम-ए-यार से आगे न बढ़ा हश्र में और भी थे मुजरिम-ए-उल्फ़त लेकिन कोई भी तेरे गुनहगार से आगे न बढ़ा ज़िंदगी अपनी थी इक वक़्फ़ा-ए-तस्कीन-ए-नफ़स जो कभी वक़्त की रफ़्तार से आगे न बढ़ा काम नश्तर का है पैवस्त रग-ए-जाँ होना वो भी तो अबरू-ए-ख़मदार से आगे न बढ़ा किस क़दर जोश पे थी साहिल-ओ-तूफ़ाँ की कशिश मेरा बेड़ा कभी मंजधार से आगे न बढ़ा रह गए दो ही क़दम जल के हज़ारों फ़ित्ने कोई फ़ित्ना तिरी रफ़्तार से आगे न बढ़ा एक दो जाम में सब हो गए बे-ख़ुद साक़ी कोई भी 'अफ़्क़र'-ए-मय-ख़्वार से आगे न बढ़ा