शौक़-ए-दिल-ए-वारफ़्ता का इक सैद-ए-ज़बूँ हूँ! खुलता ही नहीं भेद कि मैं कौन हूँ क्यूँ हूँ बस में है कहाँ अहल-ए-ख़िरद के मुझे समझें जो आँख से ओझल है मैं वो अक्स-ए-दरूँ हूँ ख़ालिक़ हूँ बहारों का सर-ए-गुलशन-ए-हस्ती जो फूल खिलाता है वो इक मौजा-ए-ख़ूँ हूँ मैं दस्त-ए-ज़माना के मिटाए न मिटूंगा इक नक़्श-ए-वफ़ा हूँ कि सर-ए-लौह-ए-जुनूँ हूँ सहबा-ए-हक़ीक़त का हूँ सरमस्त अज़ल से इक बंदा-ए-आज़ाद-ए-तिलिस्मात-ओ-फ़ुसूँ हूँ दे मुझ को दुआ तेरी तलबगार है दुनिया तू जो मुझे समझा है मैं कुछ उस से फ़ुज़ूँ हूँ 'नासिर' मुझे उल्फ़त है किसी से तो ख़ता क्या? मैं हल्क़ा-ए-अर्बाब-ए-हवस से तो बरूँ हूँ