शौक़-ए-ख़राश-ए-ख़ार मिरे दिल में रह गया पा-ए-तलाश पहली ही मंज़िल में रह गया मैं ज़मज़मा-सरा तो चमन से गया वले अफ़्साना इक गिरोह-ए-अनादिल में रह गया ज़ंजीर-ए-मौज पाँव में आ कर लिपट गई तूफ़ानियों का ध्यान ही साहिल में रह गया तस्वीर उस की कैसे खिंची मानी-ए-ख़याल हैरान जिस की शक्ल-ओ-शमाइल में रह गया काम अपना तो तमाम किया यास ने 'हवस' जी इश्तियाक़-ए-ख़ंजर-ए-क़ातिल में रह गया