शौक़-ए-ख़्वाबीदा वो बेदार भी कर देता है हवस-ए-ज़ीस्त से सरशार भी कर देता है हुस्न-ए-बे-दाग़ की बस एक झलक दिखला कर वाक़िफ़-ए-लज़्ज़त-ए-तकरार भी कर देता है पहले वो डालता है आग के दरियाओं में फिर उसी आग को गुलज़ार भी कर देता है रात भर करता है वो दिन के निकलने की दुआ सुब्ह-दम रौशनी मिस्मार भी कर देता है क़िस्सा-ए-अफ़्व-ओ-गुज़ारिश के तसलसुल के लिए बे-ख़ताओं को ख़ता-कार भी कर देता है ख़ुद ही रखता है दिए तेज़ हवा की ज़द पर और आँधी से ख़बर-दार भी कर देता है कभी सिखलाता है वो सुल्ह-ओ-सफ़ाई के हुनर कभी ख़ुद बरसर-ए-पैकार भी कर देता है कभी करता है निछावर मिरी राहों में फूल वक़्त मिल जाए तो पुर-ख़ार भी कर देता है इंकिसारी के सभी राज़ बता कर मुझ को यक-ब-यक माइल-ए-पिंदार भी कर देता है पहले करता है वो आमादा गुनाहों पे 'फ़रीद' फिर उस इक बात का इज़हार भी कर देता है