शायद अब रूदाद-ए-हुनर में ऐसे बाब लिखे जाएँगे सामने दरिया बहता होगा लोग सराब लिखे जाएँगे आज तो ख़ैर अँधेरी रातें और अज़ाब लिखे जाएँगे इक दिन अपनी गलियों में भी कुछ महताब लिखे जाएँगे पलकें यूँही फूल चुनेंगी आँखें यूँही रंग बनेंगी दस्त-ए-दुआ से दीदा-ए-नम तक ख़्वाब ही ख़्वाब लिखे जाएँगे नादिम आँखें सोच रही हैं कल तारीख़ सवाल करेगी इतना क़हत-ए-मोहब्बत क्यूँ था क्या अस्बाब लिखे जाएँगे यूँही लहू-लुहान नहीं हम, तुम भी चलो इस राह को देखो जो काँटे क़दमों में चुभेंगे सारे गुलाब लिखे जाएँगे कभी कभी ये ध्यान आता है अपने बाद भी दुनिया होगी लेकिन कैसी दुनिया होगी कौन से बाब लिखे जाएँगे रोज़-ए-अज़ल दीवार पे मेरी बारिश के हर्फ़ों से लिखा था तेरे नाम लिखे जाएँगे जो सैलाब लिखे जाएँगे