शिद्दत-ए-दर्द-ए-जिगर हो ये ज़रूरी तो नहीं और फिर आँख भी तर हो ये ज़रूरी तो नहीं बे-ख़ुदी बाइस-ए-कुल्फ़त भी तो हो सकती है हर नफ़स कैफ़-असर हो ये ज़रूरी तो नहीं ख़ुद को पामाल ही करना है तो ऐ जोश-ए-जुनूँ वो तिरी राह-गुज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं नश्शा-ए-ख़्वाब चुरा लाए तिरी आँखों से नाला-ए-शब में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं नज़र आता है जिधर सिलसिला-ए-नक़्श-ए-क़दम मेरी मंज़िल भी उधर हो ये ज़रूरी तो नहिं