शिकस्त अज़्मत-ए-पिंदार ले के आए हैं हम अपनी रूह सर-ए-दार ले के आए हैं भरोसा टूटता जाता है ना-ख़ुदाओं का सफ़ीने के लिए पतवार ले के आए हैं हम इस के बाद तुम्हें मीठी नींद भी देंगे अभी तो दीदा-ए-बेदार ले के आए हैं सफ़र में साए की शायद कहीं ज़रूरत हो हम अपने काँधे पे दीवार ले के आए हैं वो दोस्ती तो नहीं दोस्तों की फ़ितरत है मिरे लिए जो मिरे यार ले के आए हैं छुरी बग़ल में दबाए हुए हैं वो 'आसी' जो अपने हाथ में कुछ हार ले के आए हैं