शिकस्ता छत न सही आसमान रहने दे कड़ा है वक़्त कोई साएबान रहने दे कुछ और तंग न हो जाए जंगलों का हिसार फ़सील-ए-शहर अभी दरमियान रहने दे क़रीब-ए-शहर पहुँच कर ग़ुबार-ए-राह न झाड़ थके बदन पे सफ़र का निशान रहने दे न छीन मुझ से मिरे रोज़-ओ-शब के हंगामे मैं जी रहा हूँ मुझे ये गुमान रहने दे भड़क उठे न समुंदर की तिश्नगी 'राशिद' मिरा लहू भी सर-ए-बादबान रहने दे