शिकस्त-ए-दिल में भी इक ज़िंदगी नज़र आई दिया बुझा तो हमें रौशनी नज़र आई फ़राज़-ए-दार पे कोई हमें न पहचाना ज़माने वालों को ख़ुश-क़ामती नज़र आई सर-ए-दयार-ए-वफ़ा दोस्तों के झुरमुट में दरीदा जिस्म लिए दोस्ती नज़र आई अब और तर्ज़ से नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा गूँजे ज़बान-ए-ख़ल्क़ तो ख़ामोश ही नज़र आई वो रख-रखाव न देखा दिए के जलने में जो उस के बुझने में शाइस्तगी नज़र आई