शिकस्त-ए-ख़ुर्दगी के बाद हौसला नहीं हुआ जो चूका पहला वार ही तो दूसरा नहीं हुआ कहा हुआ सुना हुआ लिखा हुआ नहीं हुआ हमारे हक़ में तो कोई भी फ़ैसला नहीं हुआ क़दम सक़ील हो गए तवील राह हो गई मलाल था कमाल पर विसाल था नहीं हुआ सुकूत-ए-लब का वो सबब हैं सिसकियाँ वो हिचकियाँ निगाह-ए-इश्क़ से फ़रो वो हादिसा नहीं हुआ तमाम दिल के पारचे बिखर चुके ज़मीन पर हिसाब रखने वाले का मुहासबा नहीं हुआ पलट गए तमाश-बीं गई वो शो'बदा-गरी थी गुंग वो ज़बान जब कहा हुआ नहीं हुआ हुई बुलंद इक सदा कि अब करो वो फ़ैसला निगाह-ए-नाज़-याफ़ता वो दूसरा नहीं हुआ तुम्हारे नक़्श-ए-पा पे मैं जो चल रहा हूँ देर से मैं ख़त्म हो रहा तो हूँ प रास्ता नहीं हुआ