शिकस्त-ओ-फ़त्ह-ए-मुक़ाबिल से बे-नियाज़ तो है ब-फ़ैज़-ए-दार-ओ-रसन इश्क़ सरफ़राज़ तो है उसी से निकलेंगे नग़्मात-ए-ज़िंदगी-परवर शिकस्ता ही वो सही दिल भी एक साज़ तो है हज़ार क़िस्मत-ओ-माहौल ज़िम्मेदार सही मिरी तबाही से उन का भी साज़-बाज़ तो है ग़ुरूर-ए-हुस्न सलामत मगर ये क्या कम है हमारा दिल भी हरीफ़-ए-निगाह-ए-नाज़ तो है हुआ है फ़ाश जहाँ पर ज़बाँ पे आए बग़ैर दिल-ओ-निगाह के माबैन कोई राज़ तो है अता-ए-बादा के इंकार से ये भेद खुला कि मय-कशों में तिरे पास इम्तियाज़ तो है मुझे तलाश-ए-मसर्रत की क्या ज़रूरत है ख़ुशी ये कम नहीं दिल मेरा ग़म-नवाज़ तो है नहीं 'सईद' मिरे पास शौकत-ए-अल्फ़ाज़ मिरी ग़ज़ल में मगर क़ल्ब का गुदाज़ तो है