शिकायत बेवफ़ाई की न कर दुनिया-ए-फ़ानी में वफ़ा का नाम बाक़ी है फ़क़त क़िस्से कहानी में जो मरना था तो आख़िर क्यों न मौत आई जवानी में दिल-ए-ज़िंदा को बैठा रो रहा हूँ ज़िंदगानी में किसी के गोश-ए-अब्रू से क्या इरशाद होता है कोई कुछ अर्ज़ करता है ज़बान-ए-बे-ज़बानी में वुफ़ूर-ए-शौक़ मेरा माने-ए-दीदार था वर्ना झलक थी ख़ुद-नुमाई की सदा-ए-लन-तरानी में फुसून-ए-शौक़ बढ़ कर हो गया अफ़्साना-ए-रंगीं जिगर का ख़ून जब हल हो गया अश्कों के पानी में मोहब्बत ही ख़ुदा-ए-लम-यज़ल मालूम होती है इसी को तो बक़ा हासिल है इस दुनिया-ए-फ़ानी में चमन में ज़िंदगानी के बहार आई ख़िज़ाँ बन कर मोहब्बत ने लगाई आग दिल को नौजवानी में तअ'ज्जुब क्या अगर मुझ को मोहब्बत फिर जवाँ कर दे झलक है हुस्न-ए-यूसुफ़ की ज़ुलेख़ा की जवानी में जो दिल में दर्द उठता है तो 'बेख़ुद' शेर कहता है मदद अश्कों से मिलती है तबीअत को रवानी में