शीशे में है शराब तो शीशा शराब में या'नी है आफ़्ताब हद-ए-आफ़्ताब में सरज़द हुए गुनाह जो अहद-ए-शबाब में मालिक मिरे इन्हें तू न रखना हिसाब में आलम यही रहा तो निगाहों का ज़िक्र क्या निय्यत भी डूब जाएगी जाम-ए-शराब में ऐ बर्क़ क्या हमीं को मिटाना चमन में था था और आशियाँ न कोई इंतिख़ाब में 'अफ़्क़र' ये सब हैं उन के तबस्सुम की शोख़ियाँ रंगीनियाँ जो बन गईं मौज-ए-शराब में