मिरी तकलीफ़ आ'साबी कहाँ है ये बेदारी है बे-ख़्वाबी कहाँ है मुझे आज़ाद करना है किसी को मिरे ज़िंदान की चाबी कहाँ है ये हम जो साहिलों पर चल रहे हैं ख़बर रखते हैं ग़र्क़ाबी कहाँ है हरे हैं पेड़ नहरों के किनारे मिरी पलकों की शादाबी कहाँ है बराए सैर आए बाग़ में हम शजर-कारी की बेताबी कहाँ है