शोख़ी ने तेरी लुत्फ़ न रक्खा हिजाब में जल्वे ने तेरे आग लगाई नक़ाब में वो क़तरा हूँ कि मौजा-ए-दरिया में गुम हुआ वो साया हूँ कि महव हुआ आफ़्ताब में उस सौत-ए-जाँ-नवाज़ का सानी बना नहीं क्या ढूँडते हो बरबत-ओ-ऊद-ओ-रबाब में पूछी थी हम ने वजह-ए-मुलाक़ात-ए-मुद्दई इक उम्र हो गई उन्हें फ़िक्र-ए-जवाब में लड़ती न जाए आँख जो साक़ी से 'शेफ़्ता' हम को तो ख़ाक लुत्फ़ न आए शराब में