शुहूद-ए-दिल-ज़दगाँ मंज़रों में रख आना लहू के दाग़ गुलों के परों में रख आना ये ख़ानवादा-ए-मंसूर मिट न जाए कहीं मिरी मताअ-ए-जुनूँ कुछ सरों में रख आना हैं इन में बंद किसी अहद-ए-रस्त-ख़ेज़ के अक्स ये मेरी आँखें अजाइब-घरों में रख आना ये रात पिछले पहर आफ़्ताब ढूंढेगी चराग़-ए-शाम जला कर दरूँ में रख आना तमाम उम्र इक आँधी में पर रखे 'सालिम' विदा हो तो इक आँधी परों में रख आना