शुऊर-ए-क़ैस ने सहरा में ख़ुद-कुशी कर ली कहा गया ग़म-ए-लैला में ख़ुद-कुशी कर ली ग़म-ए-हयात के आतिश-कदे से आया था वो जिस ने कूद के दरिया में ख़ुद-कुशी कर ली हमारे क़त्ल का शाहिद तो है हर इक लम्हा मगर ये शोर है दुनिया में ख़ुद-कुशी कर ली मिला न जब कोई अवतार मुझ को कल-युग में नए जनम की तमन्ना में ख़ुद-कुशी कर ली जुनूँ तलाश-ए-बयाबाँ में मुंहमिक ही रहा ख़िरद ने साग़र-ए-सहबा में ख़ुद-कुशी कर ली रह-ए-हयात न तय हो सकी तो जमुना ने सुना है डूब के गंगा में ख़ुद-कुशी कर ली