सिधारी क़ुव्वत-ए-दिल ताब और ताक़त से कह दीजो हुए हैं ना-तवाँ हम बिस्तर-ए-राहत से कह दीजो मुआ भी मैं तो ऐ यारो जो यारों से मरे होवे सलाम-ए-शौक़ उस का तुम मिरी तुर्बत से कह दीजो गर ऐ क़ासिद तू उस के रू-ब-रू जावे इशारे से दुआ मेरी भी उस माशूक़-ए-कम-फ़ुर्सत से कह दीजो सुनो ऐ यारो इक माशूक़-ए-हरजाई के जल्वे ने फिराया दर-ब-दर मेरे तईं ग़ुर्बत से कह दीजो बयाँ जो जो कि सूरत तुझ से की है मैं ने ऐ क़ासिद तू उस के कान में झुक कर उसी सूरत से कह दीजो भला उस का तो दिल ख़ुश होवेगा इस बात को सुन कर न पहुँचे मुद्दआ को अपने हम हसरत से कह दीजो हुआ दीवाना, था वो 'मुसहफ़ी' तेरा जो सौदाई सबा गर उस गली में जाए, जमइय्यत से कह दीजो