सिखाया अक़्ल ने बरसों हमें इल्म-ओ-हुनर सब कुछ जो सोचा तो जुनूँ ही था जुनूँ से बेशतर सब कुछ अगर इक तू नहीं तो मेरे क़ब्ज़े में नहीं कुछ भी अगर तू है तो है पुखराज और ला'ल और गुहर सब कुछ नज़र आया हमें असली ठिकाना मुद्दआ' असली जब आँखें बंद कर लीं नेक और बद देख कर सब कुछ मिरा सर फोड़ना रोना तड़पना ग़श पे ग़श आना बता देना ज़बानी भी उन्हें ऐ नामा-बर सब कुछ मोहब्बत है तो फिर सब्र-ओ-सुकूँ होश-ओ-ख़िरद क्या हैं लुटाए जा तू इस मैदाँ में ऐ साहिब-नज़र सब कुछ हुआ जो कुछ था मेरे पास नज़्र-ए-ख़ाना-वीरानी दिल-ए-मोहकम दिमाग़-ए-आला-तर संगीं जिगर सब कुछ मता-ए-रंज-ओ-ग़म गंजीना-हा-ए-हसरत-ओ-हिर्मां मोहब्बत में भला क्या कुछ नहीं है मेरे घर सब कुछ मता-ए-हुस्न से इक ज़र्रा वो 'नायाब' अगर दे दे उठा दूँ शश-जिहत न आसमाँ शम्स-ओ-क़मर सब कुछ